सच्चे राजनीतिज्ञ का निधन गाजियाबाद के लिए अपूरणीय क्षति

लेखक – विजय मिश्र
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। इंडियन एक्सप्रेस, जी न्यूज, दैनिक जागरण, अमर उजाला, नई दुनिया सहित कई प्रमुख समाचार पत्र एवं न्यूज चैनल के साथ काम कर चुके हैं। उदय भूमि में प्रकाशित यह लेख लेखक के निजी विचार हैं।)

राजनीति में आज अच्छे व्यक्तियों का घोर अभाव है। स्वच्छ और बेदाग छवि के राजनीतिज्ञ ढूंढ़ने से नहीं मिल पाते हैं। ऐसे में स्वच्छ और ईमानदार छवि के राजनीतिज्ञ का असमय दुनिया से चले जाना बेहद खटकता है। बसपा के पूर्व विधायक सुरेश बंसल का आकस्मिक निधन होने की खबर से हर कोई स्तब्ध है। गाजियाबाद सदर सीट से विधायक रहे बंसल ने अपने व्यवहार और काम से अलग पहचान कायम की थी। कम समय में वह जनता के बीच अपनी जगह बनाने में कामयाब रहे थे। बसपा के टिकट से चुनाव जीतकर उन्होंने भाजपा को मात दी थी।

दरअसल गाजियाबाद सीट को भाजपा का गढ़ माना जाता है। ऐसे में भाजपा में गढ़ में सेंधमारी कर उन्होंने जीत हासिल कर उन नेताओं को जवाब दिया था, जो बात तो जनता की करते थे, मगर जरूरत के समय जनता से दूर रहते थे। पूर्व विधायक सुरेश बंसल को बसपा ने एक बार फिर गाजियाबाद सीट से चुनाव मैदान में उतारा था। इस बीच वह कोरोना संक्रमण की चपेट में आ गए थे। स्वास्थ खराब होने पर उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जहां डॉक्टरों के अथक प्रयासों के बावजूद वह बच नहीं पाए।

विशंभर सहाय के पुत्र सुरेश बंसल ने सही मायने में गाजियाबाद शहर में बसपा को स्थापित किया था। 2012 विधान सभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार अतुल गर्ग को पराजित कर बंसल पहली बार गाजियाबाद शहर सीट से विधायक चुने गए थे। बंसल की जीत से राजनीतिक गलियारों में एकाएक हलचल मच गई थी। कारण यह था कि बंसल ने भाजपा को उसी के गढ़ में मात दे डाली थी। 2017 में सुरेश बंसल पुन: चुनाव मैदान में उतरे थे। संयोग देखिए कि उनके सामने फिर भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग थे, मगर इस बार बंसल को चुनाव में जीत नहीं मिल पाई थी। हालाकि चुनाव में पराजित होने के बावजूद बंसल की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई। वह विधायक न होने के बावजूद दिन-रात जनसेवा में तत्पर नजर आए।

सिर्फ बसपा कार्यकर्ता या समर्थक ही नहीं वह हर किसी के साथ जरूरत के समय खड़े नजर आए। भाजपा, कांग्रेस और सपा नेताओं से निराश होकर भी यदि कोई फरियादी बंसल के पास पहुंचा तो उन्होंने हरसंभव मदद की। गाजियाबाद में ऐसे चुनिंदा नेता रहे हैं, जिन्हें पार्टी से अलग हटकर हमेशा देखा गया। गाजियाबाद शहर सीट से विधायक निर्वाचित होने से पहले वह दादरी म्युनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन भी रहे। पेशे से कारोबारी सुरेश बंसल ने अपना राजनीतिक सफर कांग्रेस से शुरू किया था। वे कांग्रेस की तरफ से दादरी म्यूनिसिपल बोर्ड के चेयरमैन चुने गए थे।

बाद में वह गाजियाबाद शहर आ गए। हालांकि उन्हें लोगों का जबर्दस्त समर्थन मिला। लाइनपार क्षेत्र में उन्हें भारी वोट मिले थे। 2019 लोक सभा चुनाव में भी बसपा ने गाजियाबाद सीट से सुरेश बंसल को अपना प्रत्याश बनाया, मगर वह भाजपा प्रत्याशी वीके सिंह से हार गए। राजनीतिक गलियारों में कहा जाता है कि शहर सीट में अगर भाजपा को कोई टक्कर दे सकता था तो वह सिफ सुरेश बंसल ही थे। उनके निधन से शहर गमगीन है। विरोधी भी मानते हैं कि सुरेश बंसल एक अच्छे वक्ता, व्यवहार कुशल और मृदुभाषी थे। वह जब कभी भी किसी से मिलते थे तो बड़े ही आदरभाव व विनम्र तरीके से पेश आते थे।

सुरेश बंसल कुशल राजनीतिक थे। दिल्ली से सटे गाजियाबाद शहर में लोकप्रिय नेताओं की बात करें तो चुनिंदा नाम सामने आते हैं। दिवंगत सांसद सुरेंद्र प्रकाश गोयल भी आज जनता के बीच नहीं हैं, मगर उन्हें आज भी याद किया जाता है। सुरेंद्र प्रकाश गोयल अपने व्यवहार के कारण हमेशा आम नागरिक के बीच जाना-पहचाना नाम रहे। इसके अलावा पूर्व विधायक सुरेंद्र कुमार मुन्नी को भी जनता के बीच का नेता माना जाता है। सुरेंद्र प्रकाश गोयल, सुरेश बंसल और सुरेंद्र मुन्नी के बीच नागरिकों में अपना प्रभाव छोड़ने और उन्हें अपना बनाने की जो कला देखी गई, आमतौर पर वह नेताओं के पास नहीं होती।

गोयल और मुन्नी के बाद गाजियाबाद शहर में जनता के बीच यदि कोई अपनी छाप छोड़ पाया, वह सुरेश बंसल रहे। बंसल भले ही कितने व्यस्त क्यों न रहें, मगर वह फरियादियों के लिए हमेशाा उपलब्ध रहते थे। उन्हें इससे भी कोई सरोकार नहीं था कि फरियादी किस जात-बिरादरी से संबंध रखता है। फरियाद लेकर आए प्रत्येक व्यक्ति की मदद करने को वह हमेशा तत्पर रहे। सुरेश बंसल का जाना गाजियाबाद की राजनीति में अपूरणीय क्षति से कम नहीं है।

उन्हें जब-जब याद किया जाएगा तब तब एक अच्छे, सच्चे और ईमानदार राजनीतिज्ञ के तौर पर जाना जाएगा। बंसल के आकस्मिक निधन से बसपा ही नहीं बल्कि सभी राजनीतिक दलों में शोक की लहर है। गाजियाबाद सीट से भाजपा प्रत्याशी अतुल गर्ग और सुरेश बंसल के बीच मधुर संबंध थे। यही कारण रहा कि बंसल के हॉस्पिटल मे ंएडमिट होने की खबर पाकर अतुल गर्ग तुरंत उनका हाल-चाल जानने पहुंच गए थे। राजनीति में ऐसे अवसर कम देखने को मिलते हैं।